Friday 27 June 2014

जीवन

जीवन सतत संघर्ष
कभी अपने से
कभी अपनों से
और कभी परिस्थितियों से,
एक नदी की तरह
जो टकराती राह में
कठोर चट्टानों से
और बढ़ती जाती
लेकर साथ दोनों किनारों को 
अविचल आगे राह में
अपनी मंज़िल सागर की ओर.

आने पर मंजिल
खो देती अपना अस्तित्व
विशाल सागर में,
छोड़ देते साथ किनारे
लेकर सदैव साथ जिनको
की थी यात्रा मंजिल तक.

नहीं है रुकता समय
किसी के चाहने पर,
नहीं होती पूरी सब इच्छायें
कभी किसी जन की,
असंतुष्टि जनित आक्रोश
कर देता अस्थिर मन
और भूल जाते हम
उद्देश्य अपने जन्म का.


...कैलाश शर्मा 

Friday 20 June 2014

अनवरत यात्रा

सुनिश्चित है जग में
केवल जन्म और मृत्यु
पर कर देते विस्मृत
आदि और अंत को,
समझने लगते शाश्वत
केवल अंतराल को.

जब आता समय
पुनः बदलने का निवास,
सब भौतिक उपलब्धियां
और सम्बन्ध
रह जाते पुराने घर में,
होती यात्रा पुनः प्रारंभ
कर्मों के बोझ के साथ
जहाँ से हुई थी शुरू.


...कैलाश शर्मा 

Saturday 14 June 2014

"मैं"

मैं नहीं रखता अपने साथ 
कभी अपना "मैं",
घेर लेता था अकेलापन 
जब भी होता मेरे साथ 
मेरा "मैं".

बाँट देता सब में 
जब भी होने लगता 
संग्रह मेरे "मैं" का,
दूर हो जाता 
सूनापन अंतस का,
घिरा रहता सदैव 
हम से.

....कैलाश शर्मा 

Thursday 12 June 2014

स्व-मुक्ति

जब होने लगता
अहसास अंतर्मन को 
पाप और पुण्य,
सत्य व असत्य,
कर्म और अकर्म का,
रखने लगता है पाँव 
पहली सीढ़ी पर 
स्व-मुक्ति की.

...कैलाश शर्मा